Wednesday, November 11, 2009

आओ देखें इक स्वप्न नया........







आओ देखें इक स्वप्न नया,
नई रचना हों, नई उम्मीदें,
 छोटी-छोटी सी ख्वाहिशें हो, 
हो अपनों की खुशियां जिनमें।





 पल-पल के सपने तैर रहे, 
छोटी-छोटी आशाओं में, 
मन मचल रहा छूने को यूं, 
हो सीप में,... कोई मोती जैसे।






ठण्डी में सौंधी-सी धूप खिले, 
हर तरफ हों नन्हें फूल खिलें, 
तितली में, हों कई रंग भरे, 
ख्वाबों में भी लगे पंख नये।
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प्रीती बङथ्वाल तारिका
(चित्र साभार गूगल)