Wednesday, May 20, 2009

मासूम-सा दिल है ऐ "तारिका".......

कितनी बदल गई तस्वीरें,
क्या थी खुशियां क्या थे गम,
खुद को ही न पहचान सके,
जब टकराये खुद से ही हम।


जब-जब याद करें वो लम्हें,
आंखें भूल गई ज्योती,
टूटे माला के मनको-सी,
टपक रहे मन के मोती।



सपने रह-रह तङपाते हैं,
अफसाने....बस बन जाते हैं,
जैसे कोरे कागज में रखी हो,
अपनी कोरी बात कोई।



दीवारों मे चिन जाए यादें,
कोई तो ऐसा जतन करें,
मासूम-सा दिल है,
बहल जाएगा, ऐ “तारिका”
फिर कुछ मीठा सुन करके।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका "
(चित्र - साभार गूगल)

Monday, May 18, 2009

देखो-देखो ये महाकाल..........

नेताओं ने, फेंका जाल,
फसी है जनता, बुरे हाल,
महंगाई की, पङी है मार,
देखो-देखो, ये महाकाल।


लूटपाट का, बना माहोल,
बाद में लूटे, पहले मांगे वोट,
बाहर खोलें, एक दूजे की पोल,
अन्दर सबका, डब्बा गोल।


तुम भी पेट भरो रे भैया,
हम भी माल दबायेंगे,
जनता भोली बहकादेंगे,
मिलके माल उङायेंगे।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)

Friday, May 15, 2009

तुम दीया हो, मैं हूं बाती सनम........

हम एक सफर के,
साथी सनम,
तुम दीया हो,
मैं हूं बाती सनम,
दिल के चमन में,
जब खिलते गुलाब,
कांटों के संग,
खुशबू आती सनम।



जीवन में साथ,
निभाने की कसमें,
पत्थर में,
नाम लिखाने की रसमें,
वो दरख़तों के नीचे,
शाम बितानी सनम,
हम एक सफर के,
साथी सनम,
तुम दीया हो,
मैं हू बाती सनम।



खुली धूप में,
छत पे बातें बनाना,
कभी पलके उठना,
कभी, शरमा के झुकाना,
नजरों की नजर से,
आंखे बचाना,
यूं ही छुप-छुप के,
अपना मिलना सनम,
हम एक सफर के,
साथी सनम,
तुम दीया हो,
मैं हूं बाती सनम।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)

Tuesday, May 12, 2009

मैं लहर हूं, सागर में खो जाती हूं............

सच कहना
क्या तुम भी मेरा,
दर्द समझते हो?
पत्थर से टकराना,
फिर बहजाना,
क्या अर्थ समझते हो?
न मिल पाना अपनों से,
घुट कर रह जाना,
जीवन है संघर्ष मेरा,
न कुछ पाना,
बस खोते जाना,
क्या ये सच, समझते हो?


मैं रोऊं भी तो,
क्यों कर,
न इसका एहसास तुम्हे होगा।
तुम समझ के बैठे हो,
मै इठलाती हूं,
पर न जान सके,
मैं पास जो आना चाहूं,
तो भी टकराके बहजाती हूं।
मैं लहर हूं ,
सागर में खो जाती हूं।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)

Sunday, May 10, 2009

दिल ढूंढता है फिर वही...........

दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
जिसकी छाया में
सारे दिन की थकान,
छूमंतर हो जाती।
जिसके हाथों की गरमाहट,
माथे को सहलाती,
अपने होने का
एहसास कराती,
और हर मुश्किल
आसान हो जाती।
दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।

कुछ कहने से पहले ही,
सब कुछ समझ जाती,
मन की इच्छाओं को,
भांप जाती,
गलती होने पर,
कभी डांटकर तो कभी, प्यार से समझाती,
दिल ढूंढता है फिर वही,
मां का आंचल।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)


Tuesday, May 5, 2009

मैं प्यार का समन्दर..........



अहसास में, डुबो कर,
प्यार की, कलम से,
लिख दिए, जज़्बात,
जो खिल रहे, कमल से।



मैं डोर से बंधी हूं,
तेरे प्यार का है बंधन,
तुम डूब जाओ मुझमें,
मैं प्यार का समन्दर।



मैं मोम-सी पिघल कर,
तेरी सांसों में बसूंगी,
तुम जबभी पलके मूंदों,
बस मैं ही मैं दिखूंगी।



दिल कह रहा है तुमसे,
बस याद मुझको आना,
वर्ना यूं अनबन होगी,
मेरी नजर की, तेरी नजर से।

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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"

(चित्र- साभार गूगल)