जज़्बात महोब्बत के,
सीने में धङकते हैं,
फुरसत में कभी तुम भी,
इससे सुनने आ जाना।
मैं तन्हा हूं फिर भी,
कुछ बाते करती हूं,
कभी वक्त मिले,
मुझसे,
तुम मिलने आ जाना।
रह-रह के मचलता र्है,
आंखों में जो बसता है,
वो सपना बनकर के,
तुम मुझको सुला जाना।
मैं नींद में रहकर भी,
कुछ देखा करती हूं,
तुम पास मेरे आकर,
कभी मुझको जगा जाना।
फिर खोल के जुल्फों को,
सुलझाने बैठूं तो,
तुम अपने हाथों से,
इनको सहला जाना।
इन काले केसू में,
कुछ सूनापन सा है,
एक फूल महोब्बत का,
चुपके से लगा जाना।
बारिश के मौसम में,
जब भीग रहे हो तुम,
बस अपना समझकर के,
मुझे पास बुला लेना,
मैं आदत से अपनी,
कुछ शरमा जाऊं तो,
तुम बाहों में भरकर,
मुझे गले लगा लेना।
सीने में धङकते हैं,
फुरसत में कभी तुम भी,
इससे सुनने आ जाना।
मैं तन्हा हूं फिर भी,
कुछ बाते करती हूं,
कभी वक्त मिले,
मुझसे,
तुम मिलने आ जाना।
रह-रह के मचलता र्है,
आंखों में जो बसता है,
वो सपना बनकर के,
तुम मुझको सुला जाना।
मैं नींद में रहकर भी,
कुछ देखा करती हूं,
तुम पास मेरे आकर,
कभी मुझको जगा जाना।
फिर खोल के जुल्फों को,
सुलझाने बैठूं तो,
तुम अपने हाथों से,
इनको सहला जाना।
इन काले केसू में,
कुछ सूनापन सा है,
एक फूल महोब्बत का,
चुपके से लगा जाना।
बारिश के मौसम में,
जब भीग रहे हो तुम,
बस अपना समझकर के,
मुझे पास बुला लेना,
मैं आदत से अपनी,
कुछ शरमा जाऊं तो,
तुम बाहों में भरकर,
मुझे गले लगा लेना।
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प्रीती बङथ्वाल "तारिका"
(चित्र- साभार गूगल)